कभी सोचा है माँ के काँधे कितने दुखते होंगे,
नित नयी जिम्मेदारियों के तले और थोड़ा झुकते होंगे।
कितनी उम्मीदें, आशाएं, उपेक्षाएं बाजुओं को खोंचती होंगी,
वो दिन में मुसकुराती माँ, रात भर नींद में सिसकती होगी।
छू के करना महसूस कैसे माँ के तकिये में संमदर बसते होंगे,
सूखी एड़ियों की दरारों में सौ दर्द चक्की से दरकते होंगे।
याद रखना जब कभी कहो कि माँ सब सम्हाल लेगी,
क्या हम सदा पास हैं उसके जो हमेशा हमारा साथ देगी?