वजूद

वजूद

चलते रहना तेरी फितरत में है
ये जानती हूँ मैं जानम कबसे
फिर भी साया बन चल पड़ती हूँ
तेरी बेरुखी की धूप के पीछे पीछे

तपिश में झुलस कर रुसवाईयो की
तेरी बे इनायती से बेजार हो रही हूँ
दिल-ऐ-बेदर्द से शिकवा कर के देखो
टूटे अरमानो का बाज़ार बन गयी हूँ

कभी तुम बे आदतन रुख से पलट जाओ
वक़्त की रेत पर लिखे कल पे पड़ लेना
बीते लम्हो की सीली रेखाए नज़र आएँगी
मेरी वफ़ा की याद तेरे वजूद को सताएंगी

तेरे वजूद से खुद को जुदा करके जानम
सायो की दुनिया से रुखसत हो रही हूँ
तेरे खयालो की धुन्द में जो खो गया था
उस अक्स को पोशीदा से रिहा कर रही हूँ

तुझ को खो,खुद को पा ,अपनी बंदगी रही हूँ

About Gee

In Medias Res. Storyteller. Ghost Writer. Translator. Wanderer. Blogger. Writing the bestseller called Life. Candid photographer @ImaGeees. Sometimes Artist @artbyygee Please mail at artbyygee@gmail.com for commissioned art work or to buy handmade resin jewellery.
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5 Responses to वजूद

  1. rasprabha कहते हैं:

    कभी तुम बे आदतन रुख से पलट जाओ
    वक़्त की रेत पर लिखे कल पे पड़ लेना
    बीते लम्हो की सीली रेखाए नज़र आएँगी
    मेरी वफ़ा की याद तेरे वजूद को सताएंगी… बहुत ही बढ़िया

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  2. Arpit Rastogi कहते हैं:

    So good to see you back after so long! 🙂

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  3. parganiha कहते हैं:

    मेरी वफ़ा की याद तेरे वजूद को सताएंगी.

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  4. diwyansh कहते हैं:

    जज्बात कब सवालात बन कर वजूद को अपनी आगोश में ले लेते हैं ,ये शायद हर शख्स महसूस नहीं कर पाता | आपकी अभिव्यक्ति अद्भुत है ….
    सादर

    छिड़ा है जिक्र सुर्ख लम्हों का

    आओ तुम भी हो जाओ शामिल

    ये बात मैंने भी सुनी है निगाहों से

    शहर में आ गए हैं कुछ कातिल

    तुम्हें मालूम भी है कुछ हश्र उनका

    वफा जो करने आये थे हासिल

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