कल रात भर……

सर्द मौसम से दामन बचाते
गिलाफो में खुद को छुपाते
काफ़ी की गरम चुस्की लगाते
यूं ही अचानक…
तेरी याद आ के सताती रही
कल् रात भर…..
 
याद है तुमको, हॉस्टल की छत पर
रिमझिम सौंधी हलकी बारिश में
गर्म काफ़ी के मग भर लेकर
कितनी शामें काटी थी हमने
 यूं ही ..ऐवें ही ..बतियाते हुए
किस्से कहानिया सुनाते हुए
शाम भर….सुबह तलक तक
 
तुझसे बांटे वो सारे फलसफे
मेरे जीने का सबब हे अब तक ..
 
मेरी दोस्त और हमराज़ थी तुम
साँझे गम की हमसाज़ थी हम
ज़िन्दगी की पतवार थी तुम
रिश्तो की पहरेदार थी तुम
पर  फासले आ गए दरमिया
वक्त के, फलसफो के, रिश्तो के 
और गुम  हो गयी तुम दुनिया के
रंगीन शीशो के ऊंचे दायरों में
 
बरसो बाद ,तेरे  जन्मदिन  के दिन  
 छत पे गिरती बारिश की फुहार
  
तेरी याद  आ के जलाती रही
कल रात भर……

About Gee

In Medias Res. Storyteller. Ghost Writer. Translator. Wanderer. Blogger. Writing the bestseller called Life. Candid photographer @ImaGeees. Sometimes Artist @artbyygee Please mail at artbyygee@gmail.com for commissioned art work or to buy handmade resin jewellery.
यह प्रविष्टि कविता में पोस्ट और , , टैग की गई थी। बुकमार्क करें पर्मालिंक

6 Responses to कल रात भर……

  1. नास्तिक कहते हैं:

    एक गाना भी है……..रात भर उनकी याद आती रही..उसकी पंक्तियां ठीक से याद नहीं

    पसंद करें

  2. smita कहते हैं:

    Best line:
    और गुम हो गयी तुम दुनिया के
    रंगीन शीशो के ऊंचे दायरों में

    Bahut achcha likha hai…

    सुबह तलक तक : samajh nahin aaya… isn’t “tak” redundant” ya fir meri hindi kaafi kamzor ho chuki hai….

    पसंद करें

  3. Amitabh कहते हैं:

    For a minute I thought there was some romantic angle here 🙂 The last stanza put that to rest. Nice one by the way. Makes one feel sad.

    पसंद करें

  4. Arpit कहते हैं:

    @कल रात भर……
    It is a way too Awesome. 🙂
    I wish if i ever will come up with such kind of Class in Writing…

    I m in Hostel & i wonder someday i ll be havin the same feeling for my Friends & CollegeLife…

    पसंद करें

टिप्पणी करे