पल चिन्न है,छिन पल है
रोज़ सड़को पे बिकती है
पानी है यहाँ महंगा हुज़ूर
पर ज़िन्दगी बहुत सस्ती है …
चौराहे के खूंटे पे सूखती
कड़ी तराशे सिसकती है
टूटी चूडियों के टुकड़े सहेज
कलाईया कफ़न से लिपटती है
वक़्त बहुत महंगा है हुज़ूर
पर ज़िन्दगी बहुत सस्ती है ….
अखबार की सुर्खियाँ शब् भर
लाल स्याही से चमकती है
सुबह कालिख हर्फो की
दर्द से कराह उठती है …
“कल रात तेज़ दौड़ती गाडी
एक चिराग को बुझा उडी “
रुको, संभल के चलो
ऊँचे नभ में उड़ने वालो
ज़िन्दगी तुम्हारी भी कभी
सडको पे निकलती है ….
क्या अब भी जीने की कीमत
तुम को कम दिखती है ???
typo..correct it..wp allows it..
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firdt hindi porm i read entirly..i cant do humor so i know how difficult it is..i cannot do hindi and so i know how tough it is to write somethingin hindi(typing included..)
all the best for the IB of the month…
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रुको, संभल के चलो
ऊँचे नभ में उड़ने वालो
ज़िन्दगी तुम्हारी भी कभी
सडको पे निकलती है ….
Nice One. 🙂
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वक़्त बहुत महंगा है हुज़ूर
पर ज़िन्दगी बहुत सस्ती है
bahut sahi kaha .
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shukriya Vijay ji
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namaskar..
bahut der se aapki kavitayen padh raha hoon ..is kavita ne man ko kahin rok sa diya hai .. aap bahut accha likhte hai …aapki kavitao ki bhaavabhivyakti bahut sundar hai ji ..
वक़्त बहुत महंगा है हुज़ूर
पर ज़िन्दगी बहुत सस्ती है ….
ye pankhtiyan apne aap me kuch kahti hai …
meri badhai sweekar kare,
dhanyawad.
vijay
pls read my new poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
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Farazji and Arvindji : shukriya
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aapne behtarin rachna likhi hai…..aapke shabdo ka chunav bahut hi achha rahta hai…..
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zindagi ko aaina dikhane wali kavita ke lie badhai.bahut khubsurat likha hai aapne.jitni tareef ki jaye kam hai. kabhi mere blog par bhi aayen.
http://www.salaamzindadili.blogspot.com
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aap sab ka shukriya…
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बड़े दिनों बाद आमद…..पर जिंदगी के लिए आईने के साथ
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बहुत ख़ूब
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यही तो हो रहा है आजकल.. बिलकुल सामयिक लेखन
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sahi kaha jeene ki keemat ko pahchanna boht mushkil hai……
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आज के आपाधापी भरे जीवन का अच्छा चित्रण किया है आपने अपनी रचना में…बधाई…
नीरज
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