आदतें भी अजीब होती हैं.**

आदतें भी अजीब होती हैं…..

सिगरट के धुए की तरह
साँसों में बस गए हो तुम
निकोटीन की डोस बन कर…..

दिल चाहता है कि
यह कमबख्त धुआ
ज़मी से उड़ कर-
बस जाए आँखों में तेरी
दो बूँद आंसू बन कर …..

और जब भी नम पलके रो कर
आँखों से खफा हो जाए ,
नादान आंसू ढलक के
उतर जाए दिल में तेरे……
आगोश में साँसों को लिए
बस जाए धड़कन की जगह
और……..
मेरे होने की मीठी चुभन
तेरे दिल में टीस दे गुज़र जाए
मेरे न होने का सबब लिए हुए ….

क्यूँ न मैं फिर से जी लूँ एक पल
जैसे जिया करती थी सदियों पहले …
– एक पल भी एक सदी से कम तो नही –

आदतें भी अजीब होती हैं…
जीने नही देती जीते – जीते
और मर के मरने भी नही देती …

** शीर्षक के लिए आभार Gulzar Sahab aur मेरे मित्र “मस्तो “को , उन्हें यहाँ पढ़े :
ह्त्त्प://मस्तो९६.ब्लागस्पाट.कॉम/२००७/०८/ब्लॉग-पोस्ट_१४.हटमल

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यह प्रविष्टि कविता में पोस्ट और टैग की गई थी। बुकमार्क करें पर्मालिंक

21 Responses to आदतें भी अजीब होती हैं.**

  1. दर्पण साह 'दर्शन' कहते हैं:

    gulzaar ka, gulzaar se inspired, gulzaar jaisa, ya gulzaar…..
    …kuch bhi padne ko mil jaaye kiche chal aate hain hum…
    apne to sama hi baandh diya…
    khaas kar:
    दिल चाहता है कि
    यह कमबख्त धुआ
    ज़मी से उड़ कर-
    बस जाए आँखों में तेरी
    दो बूँद आंसू बन कर …..

    (yaad aa gaya kuch…
    ….aansu ki jagah aata hai dhua…
    jine ki vajah to koi nahi! marne ka bahana dhoondta hai….)

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  2. गायत्री कहते हैं:

    @Maudgil ji: shukriya.

    @Piyush :keh doongi 🙂

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  3. Piyush k Mishra कहते हैं:

    Aisa hai Di to phir saari badhaaiyaan Riya ko 🙂

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  4. योगेन्द्र मौदगिल कहते हैं:

    Wah …. Sunder Kavita..Badhai

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  5. गायत्री कहते हैं:

    @पीयूष : बिम्ब का प्रयोग स्वाभाविक था। हमारे पड़ोस के ऑफिस में महिलाओं का हुजूम है जो सिगरेट पर जीती है … देख कर लगता है निकोटीन सांसो में बसा हुआ है उनकी ,तभी कर दो घंटे में महफ़िल जमती है .

    ….कविता की मूल प्रेरणा रिया ने दी थी । किसी बात पर रूठ कर रो पड़ी, उसकी घनी पलकों पर अटके दो बूँद आंसुओं ने मन को छू लिया , रिया तो मान गई पर कविता बह निकली…..

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  6. गायत्री कहते हैं:

    @राजीव जी : बहुत शुक्रिया ,आते रहिये .

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  7. गायत्री कहते हैं:

    @पल्लवी जी : शुक्रिया । आपका ब्लॉग देखा, अच्छा लगा। जब भी मौका लगेगा ,पहुच कर कुछ मोती चुन लूंगी। आप भोपाल से है और हमारा भोपाल से गहरा नाता है ,मिलते रहिये 🙂

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  8. राजीव करूणानिधि कहते हैं:

    आपके ब्लॉग भ्रमण पर मेरी साहित्य की जानकारी हमेशा बढ़ जाती है. शुक्रिया आपका.

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  9. Piyush k Mishra कहते हैं:

    Pahla reaction to ye hai Di ki aisi kavita kyun likhi?only for the sake of writing?

    bimb bahut hi achha prayog kiya hai.ye dard hai ya gussa ye kahne wala mushkil hai.

    masto ki rachna se prerit hai isliye us se tulna nahin karunga.

    bas yahi kahunga kavita achhi hui hai 🙂

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  10. pallavi trivedi कहते हैं:

    waah …itna achcha laga ki ek baar se man nahi bhara to teen baar padh gayi.

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  11. गायत्री कहते हैं:

    आप सब के प्रोत्साहन और विचारों के लिए बहुत शुक्रिया।
    @इष्ट देव जी : शुक्रिया
    @रस्तोगी जी : कुछ आदतें अच्छी भी होती है -जैसे लिखना और पड़ना 🙂
    @विनयजी : सही कहा आपने
    @भारतीय नागरिक जी : तुलना सहज थी, देखिये न हमारे आस पास कितने लोग है जो आदतन धूम्रपान करते है .
    @कुश : सही कहा आपने , हमारी हर रचना के पीछे वही तो है , मस्तो की रचना भी ऐसी जेहन में उतारी हुई थी, कीकही उसको “tribute “देना ज़रूरी था 🙂
    @रोहित जी : आते रहिये 🙂
    @शोभा जी, महक जी, रंजना जी : बहुत शुक्रिया
    @डॉक्टर साहब : शुक्रिया। हमें भी इंतज़ार है आपकी और कुश जी की डबल काफी का .

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  12. डॉ .अनुराग कहते हैं:

    आप आये तो सही…ओर क्या खूब आये ….गुलज़ार की इन पंक्तियों ने कई बार मुझे भी खींचा है कुछ लिखने के लिए पर शायद आप जैसा नहीं लिख पाता …..खूबसूरत ………गायत्री जी अब इस महफ़िल को जलाए रखिये

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  13. रंजना [रंजू भाटिया] कहते हैं:

    क्यूँ न मैं फिर से जी लूँ एक पल
    जैसे जिया करती थी सदियों पहले …
    – एक पल भी एक सदी से कम तो नही –

    बहुत सुन्दर बढ़िया लगी यह

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  14. mehek कहते हैं:

    ek ehtarin rachana ke liye bahut badhai,bahut alag aur achhi lagi.

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  15. शोभा कहते हैं:

    दिल चाहता है कि
    यह कमबख्त धुआ
    ज़मी से उड़ कर-
    बस जाए आँखों में तेरी
    दो बूँद आंसू बन कर …..
    वाह वाह बहुत सुन्दर लिखा है।

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  16. Rohit Tripathi कहते हैं:

    You have a awesome blog here.. kya kavitaye kya kahaniya. sab shaandaar 🙂 pahli baar aana hua aapke blog pe shayad 🙂 ab to aan jaan laga hi rahega 🙂 bahut pyara likhti hai aap 🙂
    Rohit Tripathi

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  17. कुश कहते हैं:

    शीर्षक के लिए वैसे तो आभार गुलज़ार साहब को जाना चाहिए.. पर मस्तो ने अपनी ज़िंदगी का एक मास्टर पीस लिखा है.. जो मैं कई कई बार पढ़ चुका है.. दिल में गहरे तक उतर जाता है..

    आपकी लिखावट ने भी समा बाँध दिया..

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  18. भारतीय नागरिक - Indian Citizen कहते हैं:

    क्या खूब उपमा दी है निकोटीन से तुलना कर.

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  19. विनय कहते हैं:

    कोई इतनी ही सरलता से सिगरेट या दूसरा नशा छोड़ पाता जितनी कि कविता है तो कितना अच्छा होता


    चाँद, बादल और शाम

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  20. अंशुमाली रस्तोगी कहते हैं:

    अक्सर आदतें लत बन जाती हैं।

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  21. इष्ट देव सांकृत्यायन कहते हैं:

    सिगरट के धुए की तरह
    साँसों में बस गए हो तुम
    अद्भुत बिम्ब है. बधाई.

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