शब्दो की सखी
यहां पर हैं कुछ किस्से , कहानी , कविता, यात्रा गाथा .....कुछ आप बीती कुछ जग बीती....
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शब्दो की सखी
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Author Archives: Gee
वंश वृद्धि
“किस तरह की माँ है ये ?” अखबार को टेबल पर रखते ही मेरे मुँह से आह निकली . नारी जननी से भक्षक कैसे बन सकती है? मेरे मन को ये सवाल लगातार कचोट रहा था। “क्या हुआ बहु जी … पढना जारी रखे
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पलाश के फूल
पतझड़ बसंत के मौसम में, आसाँ नहीं पलाश फूल होना. पल में आस्मां का सितारा, पल में ज़मीं में धूल होना. पत्तों को अलविदा कहते शाखों का ठूँठ का होना ! बरस हर बरस बहार बन, पाइयों तले मसल मरना। … पढना जारी रखे
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अहम्
मर गया तो मै नहीं, फ़िर मै का अस्तित्व क्या, तस्वीरों की गुफ़्तगू से बस दीवारें ही सजती हैं!
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नया साल?
बरसों से साल की शुरुवात एक कविता लिख कर करती हूँ. पिछले नए साल पर ये लिखा था, पर जवाब मिले नहीं अभी तक. सवाल बन कुछ इस तरह ज़हन में अटके पड़े हैं : क्या फिर वही होंगे … पढना जारी रखे
स्वतंत्रता दिवस -एक लघु कथा
दीपू आज बहुत खुश था .इतना खुश कि ख़ुशी के मारे पूरी रात आँखों ही आँखों में काटी थी, बस कब सुबह हो और उसका ख्वाब पूरा हो! कल १५ अगस्त जो है . बापू ने उसे वादा किया था … पढना जारी रखे
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