ट्रेन स्टेशन पर देखो तो खड़ी कतारे ऐसी लगती है
ट्रैफिक लाइट पर ठहरी जेब्रा क्रॉसिंग की धारिया हो
पाक सी ,सफ़ेद सी ,शांत सी ,नम सेज सी ….
नौसिखिये गार्ड ,कान खुजाते ,अनमने ढंग से हुजूम को रोके
लक्ष्मण रेखा रोके रखते है ,पीली पट्टी के पीछे ….
पर ज्यूँ ही ट्रेन की हूंकार गूँजती है ड्रोम्स मे
धारिया बदल जाती है मक्खियों के झुंड में
शहद का पहला स्वाद चखने को आतुर जैसे
जीत की ललक लिए मदमाते झुन्झुनाते जूनून में …
देखो इन अमानुसो को ,बंद दरवाज़े को धक्का दिए,
आगे बड़े जाते है, दूजे के काँधे पे सवार हुए जाते है
तत्व राख मे समा जाए ऐसे बस जाते है कोच मे
नियति का खेल यही फिर से चलता है
इक मेला निकलता है तो दूसरा रेला उमड़ता है ….
और वो बूढा जो कतार में आगे खडा था पहले से
अब फिर कतार में पहले नंबर पर ही खडा है ….
अगली गाडी की राह देखता अपनी किस्मत की बाट देखता
हुजूम में अहम और अस्तित्व समेट रखने की कोशिश करते ………………..
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शुक्रिया.ज़रूर करूँगी.
गायत्री
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चिटठा जगत में आपका स्वागत है.
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उम्मीद करते हैं कि आप अपनी कलम से अपना नाम ही नहीं हमारे समाज और देश के कई अनगिनत पहलुओं को भी कमा ले जाएंगे. शुक्रिया. जारी रहिये.
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देश भक्ति के भावः को दीजिये शब्द “एक चिट्ठी देश के नाम लिखकर” कहिये देश को अपनी बात- विजिट करें- [उल्टा तीर] http://ultateer.blogspot.com
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शुक्रिया आपका.
गायत्री
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aage nikal jaane ki aapaa-dhaapi mein kiske paas samay hai ki ek budhe per dhyan ne. Insaniyat kahin khoti jaa rahi hai…
bahut acchha prayas hai Gee iss baat ko darshaane ka.
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thanks Nimishaji.
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नियति का खेल यही फिर से चलता है
इक मेला निकलता है तो दूसरा रेला उमड़ता है ….
Very nice. 🙂
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thanks dear:)
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