आओ एक नया जहाँ बसाए
इक दूजे में हम समां जाये
अब दुनिया से मन भर गया हे
कुछ सपनो की दीवारे बनाए
हसीं खयालों से उन्हें सजाए
ईंट पत्थर से ना हो वास्ता
आओ कुछ मिटटी गारा ले आये
कुछ तुमसा कुछ मुझसा बनाए
अब खिलोने से दिल भर गया
आओ कहीँ दूर निकल जाये
शांति और अमन को अपनाए
ख़ून खराबे से हो किसका भला
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About Gee
In Medias Res.
Storyteller. Ghost Writer. Translator. Wanderer. Blogger.
Writing the bestseller called Life.
Candid photographer @ImaGeees.
Sometimes Artist @artbyygee
Please mail at artbyygee@gmail.com for commissioned art work or to buy handmade resin jewellery.
यह प्रविष्टि
कविता में पोस्ट की गई थी। बुकमार्क करें
पर्मालिंक।
@हरीराम जी, शेखर जी,लाल साहब :
आपके सुझावों और सराहना का शुक्रिया. गुलज़ार साहब की इस अदभुत विधा की एक छात्रा हूँ, अच्छी त्रिवेणी बनाने का प्रयास जारी रहेगा.
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बढ़ियां रही त्रिवेणियों की धार. बधाई. जारी रखें.
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गायत्री जी,तीसरी त्रिवेणी विशेषकर अतयंत मर्मस्परस्पर्शी है। एक-दो सुझाव है, रचना के प्रवाह को ध्यान में रखते हुए। ठीक लगें तो अपनायें:
1. दूसरी त्रिवेनी की अंतिम पंक्ति अगर यूँ हो तो:
ईंट-गारे के मकानों में दम घुट गया है।
2. अंतिम त्रिवेणी की अंतिम 2 पंक्तियां:
शांति और अमन का दिया जलायें
ख़ून-ख़राबे से मन बुझ गया है।
उत्तम रचना के लिये बधाई।
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आपके सपनों का नया संसार अवश्य बनेगा। बड़ी भावपूर्ण रचनाएँ हैं आपकी। दिलो-दिमाग को झिंझोड़नेवाली। प्रेरक, उत्प्रेरक।
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