रिश्तों को रिसते देखा है हमने..

रिश्तों को रिसते देखा है हमने
बरसों से संजोइ इक पौध दी
प्यार और विश्वास से सांवारी हुई
वक़्त की आँधियों से उसे
जद्द से उखाड़ाते
देखा है हमने…

एक चुप्प बरसी है आँगन में
सीली दीवारों से निकल कर
गरजते बादलो को बरसते
देखा है हमने …….

एक चोट लगी थी हल्की सी
मरहम की ज़रूरत भी ना थी
खरॉंचों को नासूर बन सड़ाते
देखा है हमने …….

दुनिया के काँधे पे सर रख
जब सिसकियाँ भरी हमदर्दी के लिए
अपने गमो पर ग़ैर आँखों को
जमकर हँसते
देखा है हमने …..

तेरे शहर से दिल भर गया है शॉना
तीरे कूचे गलियों को
धीरे से सरकते
देखा है हमने ……

रिश्तों को रिसते देखा है हमने॥

About Gee

In Medias Res. Storyteller. Ghost Writer. Translator. Wanderer. Blogger. Writing the bestseller called Life. Candid photographer @ImaGeees. Sometimes Artist @artbyygee Please mail at artbyygee@gmail.com for commissioned art work or to buy handmade resin jewellery.
यह प्रविष्टि कविता में पोस्ट की गई थी। बुकमार्क करें पर्मालिंक

6 Responses to रिश्तों को रिसते देखा है हमने..

  1. RATIONAL RELATIVITY कहते हैं:

    सीली दीवारों से निकल कर……बरसते देखा है हमने……
    बेहतरीन अभिव्यक्ति.
    Dr.R Giri

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  2. अनूप शुक्ला कहते हैं:

    अच्छा लिखा है!

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  3. Shekhar कहते हैं:

    रिश्तों और समाज के नकारात्मक रूप और फलस्वरूप कवियत्री के मन की व्यथा को बखूबी दर्शाती है यह कविता। कविता में कुछ पंक्तियां आप ने स्वयं को सबोधित कीं…तेरे शहर से दिल भर गया है शोना…क्लासिकी उर्दू शायरों का ध्यान हो आया। अच्छा लगा।

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  4. राकेश खंडेलवाल कहते हैं:

    एक चुप्प बरसी है आँगन में
    सीली दीवारों से निकल कर
    गरजते बादलो को बरसते
    देखा है हमने …….

    ख्याल अच्छा लगा

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  5. परमजीत बाली कहते हैं:

    गायत्री जी, बहुत बढिया रचना है। बधाई।

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  6. मोहिन्दर कुमार कहते हैं:

    बहुत सही लिखा है आपने… दुनिया बहुत कुछ ऐसी ही है जैसा आपने सोचा है

    दुनिया के काँधे पे सर रख
    जब सिसकियाँ भरी हमदर्दी के लिए
    अपने गमो पर ग़ैर आँखों को
    जमकर हँसते
    देखा है हमने …..

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